मानव शरीर की शोभा मुख है। मुख की शोभा भगवान का नाम है। श्रीमद् भागवत महापुराण में यमराज ने अपने दूतों से कहा-
जिह्मा न वक्तिं भगवद् गुण नाम ध्येयं | चेतश्च न स्मरति तत् चरणार्विन्दम् ||
भगवान के नाम में अभिन््तय शक्ति है। श्रीधर स्वामी ने अपनी भागवत गीता में लिखा है “वस्तु शक्ति सान की अपेक्षा न ही रखती है।” जैसे - कोई व्यक्ति अमृत जानकर पिये या अनजान में पिये अमर हुए बिना नही रह सकता | अग्नि को जानकर स्पर्श करे या अनजान में स्पर्श करे जले बिना नही रह सकता। इसी प्रकार भगवान का नाम भाव से ले या कुभाव से जप करें भव सागर से तरे बिना नही रह सकता । गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा-
भाय कुभाय अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।।
नाम जपहि जन आरत भारी | भिट॒हि कुसंकर होइ सुखारी |।
मंत्र महामनि विषय व्यालके | मेटत कठिन कुअंक भाल के ||
राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार | तुलसी भीतर बाहरेहु जौ चाहसि उजियार ||
राम नाम भव भेषण हरनि घोर भय शूल | सोइ कृपाल मोहि तो पर सदा रहहि अनुकूल ||
भगवान के नाम की बहुत महिमा है इस कलियुग में तो राम नाम ही अवलम्ब है| राम नाम ही आधार है। - एहि कलिकाज न साधन दूजा | जोग जग्य जप तप व्रत पूजा | रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत ,सनिअ राम गुन ग्रामहि संतों । भक्तों ने गाया है।
आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो | खाते भी राम बोलो, पीते भी राम बोलो ||
सोते भी राम बोलो, जगते भी राम बोलो | तुम जब भी मुँह को खोलो, बस राम राम बोलो ||
आराम की तलब है तो बस एक काम कर | आ राम की शरण में बस राम राम कर ||
सभी भक्तों के लिए सीताराम जी से प्रार्थना एवं मंगल कामना के साथ -
आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम् ।
वैदेहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम् ।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम् ।
पश्चाद् रावण कुम्मकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम् |।
आदौ देवकी-देवगर्भजननं गोपीगृहे वर्धनम् ।
मायापूतना जीवितापहरणं, गोवर्धनोधारणम् ।।
कंसच्छेदन कौरवादि हनन, कुन्ती सुतपालनम् ।
एतत् श्रीमद्भागवतपुराणकथितं, श्रीकृष्णतीलामृतम् ||